गीत(16/14) कठिन मार्ग भी सरल हो गया, जब से तेरा साथ मिला। भागीं सब बाधाएँ पथ तज, निर्जन में भी सुमन खिला। चढ़ कर गिरि पर मन यह कहता, पा लूँ अम्बर की गरिमा। लगा छलाँगे सिंधु-उर्मि में, जान सकूँ सागर-महिमा। तुम्हें प्राप्त कर प्रियवर मैं दूँ, कठिनाई की चूर हिला।। कठिन मार्ग भी सरल हो गया,जब से तेरा साथ मिला।। मिला सहारा सबल तुम्हारा, नहीं रही चिंता कोई। तुमको पाकर मेरे साथी, जगी शक्ति जो थी सोई। तेरे बल पर विरह-व्यथा का, तोड़ सकूँ अब प्रबल किला।। कठिन मार्ग भी सरल हो गया,जब से तेरा साथ मिला।। सागर से सरिता मिल करती, कितना अपना रूप बड़ा! पैदा करता जल विद्युत को, चट्टानों से स्वयं लड़ा। अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती जब, भिड़े शिला से एक शिला।। कठिन मार्ग भी सरल हो गया,जब से तेरा साथ मिला।। मिलन सुखद संयोग बनाता, जीवन नवल उजाले का। ऐसे ही तो जग चलता है, हो गोरे या काले का। वस्त्र तभी आकार है पाता, जब धागे से रहे सिला।। कठिन मार्ग भी सरल हो गया,जब से तेरा साथ मिला।। © डॉ0 हरि नाथ मिश्र 9919446372