सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(16/14) कठिन मार्ग भी सरल हो गया, जब से तेरा साथ मिला। भागीं सब बाधाएँ पथ तज, निर्जन में भी सुमन खिला। चढ़ कर गिरि पर मन यह कहता, पा लूँ अम्बर की गरिमा। लगा छलाँगे सिंधु-उर्मि में, जान सकूँ सागर-महिमा। तुम्हें प्राप्त कर प्रियवर मैं दूँ, कठिनाई की चूर हिला।। कठिन मार्ग भी सरल हो गया,जब से तेरा साथ मिला।। मिला सहारा सबल तुम्हारा, नहीं रही चिंता कोई। तुमको पाकर मेरे साथी, जगी शक्ति जो थी सोई। तेरे बल पर विरह-व्यथा का, तोड़ सकूँ अब प्रबल किला।। कठिन मार्ग भी सरल हो गया,जब से तेरा साथ मिला।। सागर से सरिता मिल करती, कितना अपना रूप बड़ा! पैदा करता जल विद्युत को, चट्टानों से स्वयं लड़ा। अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती जब, भिड़े शिला से एक शिला।। कठिन मार्ग भी सरल हो गया,जब से तेरा साथ मिला।। मिलन सुखद संयोग बनाता, जीवन नवल उजाले का। ऐसे ही तो जग चलता है, हो गोरे या काले का। वस्त्र तभी आकार है पाता, जब धागे से रहे सिला।। कठिन मार्ग भी सरल हो गया,जब से तेरा साथ मिला।।                  © डॉ0 हरि नाथ मिश्र                       9919446372

अवनीश त्रिवेदी अभय

ग़ज़ल  इबादत   का   बहाना   चाहिए  था। मग़र  कुछ  तो  बताना  चाहिए था। हमारे  ज़ख्म फ़िर  से  भर  गए  हैं। तुम्हें  अब  लौट आना  चाहिए था। मुहब्बत का मुक़म्मल इल्म तुमको। कहीं  तो  दिल  लगाना चाहिए था। हमेशा  रूठते   तुम   ही   रहे   हो। कभी  मुझको  मनाना  चाहिए था। हमारे  जर्फ़  से  वाकिफ़  नहीं  हो। कभी  तो  आजमाना  चाहिए  था। तुम्हें  फ़रहाद -  शीरी  याद   होगा। हमारा  भी   फ़साना  चाहिए   था। अदायत में 'अभय' ख़ामोश  क्यों हो। तुम्हें    भी   मुस्कुराना   चाहिए   था। अवनीश त्रिवेदी 'अभय'