*गुलाब*
देकर गुल- ए -गुलाब
आलि अलि छल
कर गया,
करके रसपान
गुलाबी पंखुरियों का,
धड़कनें चुरा गया।
पूछता है जमाना
आलि नजरों को
क्यों छुपा लिया
कैसे कहूँ ,
कि अलि पलकों
में बसकर,
आँखों का करार
चुरा ले गया।
होती चाँद रातें
नींद बेशुमार थी,
रखकर ख्वाब
नशीला, आँखों में
निगाहों का
नशा ले गया,
आलि अली
नींदों को करवटों की
सजा दे गया।
देकर गुल-ए-गुलाब......
डा. नीलम
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