सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

डा. नीलम

*गुलाब*

देकर गुल- ए -गुलाब
आलि अलि छल
कर गया,
करके रसपान
गुलाबी पंखुरियों का,
धड़कनें चुरा गया।

पूछता है जमाना
आलि नजरों को
क्यों छुपा लिया
कैसे कहूँ ,
कि अलि पलकों
में बसकर,
आँखों का करार
चुरा ले गया।

होती चाँद रातें
नींद बेशुमार थी,
रखकर ख्वाब
नशीला, आँखों में
निगाहों का
नशा ले गया,
आलि अली
नींदों को करवटों की
सजा दे गया।

देकर गुल-ए-गुलाब......

     डा. नीलम

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विश्व रक्तदान दिवस पर कविता "रक्तदान के भावों को, शब्दों में बताना मुश्किल है" को क्लिक पूरी पढ़ें।

विश्व रक्तदान दिवस पर कविता "रक्तदान के भावों को, शब्दों में बताना मुश्किल है" को क्लिक पूरी पढ़ें। विश्व रक्तदान दिवस पर कविता  ==================== रक्तदान    के     भावों    को शब्दों  में  बताना  मुश्किल  है कुछ  भाव  रहे  होंगे  भावी के भावों को  बताना  मुश्किल  है। दानों   के    दान    रक्तदानी   के दावों   को   बताना   मुश्किल  है रक्तदान  से  जीवन परिभाषा की नई कहानी को बताना मुश्किल है। कितनों    के    गम    चले     गये महादान को समझाना मुश्किल है मानव   में    यदि    संवाद    नहीं तो  सम्मान   बनाना   मुश्किल  है। यदि   रक्तों   से   रक्त   सम्बंध  नहीं तो  क्या...

अवनीश त्रिवेदी अभय

*चादर उजली रहने दो* घोर तिमिर है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। तपते घोर मृगसिरा नभ में, कुछ तो बदली रहने दो। जीवन  के  कितने  ही  देखो, आयाम अनोखे होते। रूप  बदलती इस दुनिया में, विश्वासी  धोखे   होते। लेकिन इक ऐसा जन इसमें, जो सुख-दुःख साथ गुजारे। हार-जीत  सब  साथ सहे वो, अपना सब  मुझ पर वारे। चतुर  बनी  तो  खो जाएगी, उसको पगली रहने दो। घोर तिमिर है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। मंजिल अभी नहीं तय कोई, पथ केवल चलना जाने। तम कितना गहरा या कम है, वो केवल जलना जाने। कर्तव्यों  की झड़ी लगी है, अधिकारों  का  शोषण है। सुमनों  का  कोई  मूल्य नहीं, नागफ़नी का पोषण है। सरगम-साज नहीं है फिर भी, कर में ढफली रहने दो। घोर  तिमिर  है  सम्बन्धों  की, चादर उजली रहने दो। आगे  बढ़ने  की  जल्दी  में, पीछे सब कुछ छोड़ रहें। आभासी  दुनिया  अपनाकर, अपनों से मुँह मोड़ रहें। केवल लक्ष्य बड़े बनने का, कुछ भी हो पर बन जाएं। देखा  देखी...