*चादर उजली रहने दो* घोर तिमिर है सम्बन्धों की, चादर उजली रहने दो। तपते घोर मृगसिरा नभ में, कुछ तो बदली रहने दो। जीवन के कितने ही देखो, आयाम अनोखे होते। रूप बदलती इस दुनिया में, विश्वासी धोखे होते। लेकिन इक ऐसा जन इसमें, जो सुख-दुःख साथ गुजारे। हार-जीत सब साथ सहे वो, अपना सब मुझ पर वारे। चतुर बनी तो खो जाएगी, उसको पगली रहने दो। घोर तिमिर है सम्बन्धों की, चादर उजली रहने दो। मंजिल अभी नहीं तय कोई, पथ केवल चलना जाने। तम कितना गहरा या कम है, वो केवल जलना जाने। कर्तव्यों की झड़ी लगी है, अधिकारों का शोषण है। सुमनों का कोई मूल्य नहीं, नागफ़नी का पोषण है। सरगम-साज नहीं है फिर भी, कर में ढफली रहने दो। घोर तिमिर है सम्बन्धों की, चादर उजली रहने दो। आगे बढ़ने की जल्दी में, पीछे सब कुछ छोड़ रहें। आभासी दुनिया अपनाकर, अपनों से मुँह मोड़ रहें। केवल लक्ष्य बड़े बनने का, कुछ भी हो पर बन जाएं। देखा देखी...
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