विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल की कविता भूलो सभी को मगर, पुस्तक को भूलना नहीं। - देखें।
विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल
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भूलो सभी को मगर
पुस्तक को भूलना नहीं।।
भूलो सभी को मगर
पुस्तक को भूलना नहीं।
परोपकार अगणित हैं इसके
इस ज्ञान को भूलना नहीं
अमिय पिलाती है हमें
जग में कालकूट घोलना नहीं
पुस्तक को भूलना नहीं ।।
श्री कृष्ण ने गीता दिया
दिगदिगांत के लिए किया नहीं
परिवर्तनों की प्रविधियाँ हो रही
संदेह की गुंजाइश दिया नहीं
विद्वता की राह को प्रशस्त कर
आत्मज्ञान को भूलना नहीं
पुस्तक को भूलना नहीं ।।
पूरे करो अरमान अपने
क्षितिज सा दान भूलना नहीं
लाखों कमाते हो भले
अभिज्ञान को भूलना नहीं
ज्ञान बिन सब राख है
इस मद में फूलना नहीं
पुस्तक को भूलना नहीं।।
जैसी करनी वैसी भरनी
इसके न्याय को भूलना नहीं
संस्कृति का आध्यात्म है
इसे कभी छोड़ना नहीं
कलम का सिपाही बनाती
इसके मान को भूलना नहीं
पुस्तक को भूलना नहीं।।
सरस्वती का चिरकाल तक वास इसमें
"व्याकुल" ज्ञान - वन्दना भूलना नहीं
भूलो सभी को मगर
पुस्तक को भूलना नहीं ।।
रचना - दयानन्द त्रिपाठी
व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज।
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