कोरोना काल में लाकडाउन पर रचना, इस युग में अनचाहा सा संग्राम हो रहा, जीवन पर अब अभिमान हो रहा, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ.....क्लिक कर पढ़े।
कोरोना काल में लाकडाउन पर रचना, इस युग में अनचाहा सा संग्राम हो रहा, जीवन पर अब अभिमान हो रहा, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ.....क्लिक कर पढ़े।
घर में रह तूँ, घर में रह तूँ.....
कलयुग में अनचाहा सा संग्राम हो रहा,
जीवन पर अब अभिमान हो रहा ।
घर में रह तूँ, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ।।
ना तेरा है ना मेरा है,
यहाँ सब अपना - अपना है ।
यह मिलता है और खोता है,
फिर काँहें को तूँ रोता है ।।
इसकी सच्चाई जान के भी,
क्यूँ आंखे खोल के सोता है ।
इसको ले लूँ उसका ले लूँ ,
पर तेरे बाद ये किसका है ।।
इसको दे दूँ उसको दे दूँ ,
यह तेरा है ना उसका है ।
तूँ खो जाने पर रोता है ,
हंसता है मिल जाने पर तूँ।।
घर में रह तूँ, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ।।
यह भूल गया है तूँ शायद,
क्या जीवन को पाकर खोना है?
जब तेरा-मेरा जन्म हुआ जग में,
तो पैदा होकर रोया है ।।
हाथों में तेरे कुछ ना था,
यह खाली था तेरे-मेरे तन जैसा ।
नाजुक सी तेरी काया थी ,
निर्मल , पवित्र तेरा-मेरा मन भी था ।।
कोई तेरी-मेरी पहचान न थी,
पहचान बनी तेरे-मेरे कर्मों से ।।
भाषा का तुझको ज्ञान न था ,
अंजान था हर बातों से तूँ ।
घर में रह तूँ, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ।।
लेकिन ना तूँ पहचान सका,
कि जीवन क्या और मृत्यु क्या है।
दोनों में कुछ भी भेद नहीं,
दोनों सत्य हमेशा से है ।।
फिर अपने पर अभिमान ना कर
यह सत्य नहीं इंसान से बढ़ कर ।
यदि मंज़िल पाना चाहता है,
तो शूलों से क्यों घबराता है तूँ।
शारीरिक सुखों की खातिर क्यों,
व्याकुल पथ बाधाओं से डर जाता है तूँ।।
कलयुग में अनचाहा सा संग्राम हो रहा,
जीवन पर अब अभिमान हो रहा ।
घर में रह तूँ, घर में रह तूँ, घर में रह तूँ।।
दयानन्द_त्रिपाठी
व्याकुल
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