चिंतन विषय पर नयी रचना प्रस्तुत है...चिंतन दिन रात करता हूँ....
चिंतन_दिन_रात_करता_हूँ...
मैं,
स्वयं चिंतन दिन - रात करता हूँ
कभी - कभी किसी
विषय विशेष पर स्वयं ही
गम्भीर वाद - प्रतिवाद करता हूँ
हो गयी जो मूल का भूल
उन पर हमेशा पश्चताप करता हूँ।
मैं,
स्वयं चिंतन दिन-रात करता हूँ।।
मेरा साथी अपना
चिंतन और मैं
ऐसी चुनौती को स्वीकार करता हूँ
बनूँ अपनी आत्मा का दर्पण
पारदर्शी हो मेरा चिंतन
ऐसा दूरदर्शी प्रयास करता हूँ।
मैं,
स्वयं चिंतन दिन - रात करता हूँ।।
कदाचित विचलित होऊँ
समस्याओं के विलोम प्रभाव से
इस हेतु बनाने को सम्बल
बाती सा जलकर
प्रकाश फैलाने का
स्वयं से वादाकार करता हूँ।
मैं,
स्वयं चिंतन दिन - रात करता हूँ।।
हासिल करो तुफानों को
जितने का हुनर
जिन्दगी अजायबघर न बने
भटकना न पड़े परिकल्पनाओं में
अस्तित्वहीन न हो चिंतन
कल्पनाओं में सजीव होऊँ
नि:शब्द न बनूँ, नितांत बन
व्याकुल हो निशांत सा दर्पण
बनने का प्रयास करता हूँ।
मैं,
स्वयं चिंतन दिन - रात करता हूँ।।
दयानन्द त्रिपाठी
व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज,
उत्तर प्रदेश।
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