नई रचना "हाँ आओ हम सब दिया जलायें, रश्मि खोजें तिमिर में फैलायें"-क्लिक कर पढ़ें।
हाँ आओ हम सब दिया जलायें,
रश्मि खोजें तिमिर में फैलायें।।
नहीं अवस्था है इसकी न ही कोई आयु,
मानो रूककर बहने लगी कोई रश्मि वायु।
जो भावयुक्त अंधकारहीन आलम्बन का है आश्रय,
इसकी गति विद्युत से आगे, न उद्धव न इसका है क्षय।
जैसा वायु आश्रय पाता, वैसा यह रूप दिखाये,
जो काल-समय के अँधियारे में, अपना स्वरूप दिखलाये।
हाँ आओ हम सब दिया जलायें,
रश्मि खोजें तिमिर में फैलायें।।
जीवन से बढ़कर मानो, इसका आकार निराला है,
इसने ही सारे भावों को अपने अन्त: में पाला है।
इसके सामर्थ्य की थाह नहीं, पत्थर को मोम बनाता है,
मानों इसका आकार प्रेम, अंधकार के मौन को नई राह दिखाता है।
जिसका आभोग नहीं कोई, न ही कोई बन्धक इसका दिखलाये,
जो खेचर की श्रेणी का है, "व्याकुल" न कोई अवलम्बन से अँधियारा छाये।
हाँ आओ हम सब दिया जलायें,
रश्मि खोजें तिमिर में फैलायें।।
दयानन्द त्रिपाठी
व्याकुल
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