आधुनिक कवियों पर एक नई रचना व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत है..एक सच्चा कवि हूँ...
एक सच्चा कवि हूँ....
एक सच्चा कवि हूँ
खुशबू को छोड़ सभी हूँ
गोबर जैसा पोताड़ा हूँ
जंधिये का नाड़ा हूँ
कविता का बिगाड़ा हूँ
रवि की पकड़ से दूर का सभी हूँ
एक सच्चा कवि हूँ।।
झूठ बोलता नहीं
सच्चाई मेरा रास्ता नहीं
साहित्य से कोई वास्ता नहीं
उट - पटांग कविताओं का जन्मदाता हूँ
प्रतिभा का समेशन कर बना कवि हूँ
बाथरूम से निकला अभी हूँ
एक सच्चा कवि हूँ ।।
बे पेदीं का लोटा हूँ
टूटे हुए सोल का फटा हुआ जूता हूँ
प्रत्येक कविता का सर्जरी कर
मार्ग से भटका देता हूँ
कविता - लिख सुनाने का चेष्टा करता हूँ
साहित्य का सफोकेटा हूँ - 2
ये मेरी पुरानी बिमारी है
मैं डाक्टरों के लिए परेशानी हूँ
इस देश में पागल खाने हैं कम
पागल हैं ज्यादा
इसीलिए कविता करने पर हूँ आमादा
काव्य - दंगल का कभी
न दूर होने वाला डिफेक्ट हूँ
आधुनिक कवि के
चरित्र में हमेशा परफेक्ट हूँ
इस कारण
माइन्ड का दिल से कनेक्श नहीं
प्रेम-पूजा, साहित्य सेवा
भक्ति - साधना से दूर टेन्शन हूँ
साहित्यिक समाज को
चालने वाला दिमक भी हूँ
एक सच्चा कवि हूँ।।
प्रत्येक मजबूत दिवार का कमजोर बेस हूँ
न साहित्य जानता हूँ
न साहित्यितक कवि हूँ
बचा हुआ शेष हूँ
और प्राचीन साहित्यिक असभ्य
कवियों का अवशेष हूँ
देखो अगर ध्यान से
मैं साहित्यिक सफोकेशन हूँ
कविता का हेजीटेशन हूँ
कवि - मंच पर रहता परमानेन्ट हूँ
श्रोताओं के लिए एक्सीडेन्ट हूँ
बिलीव मी
मैं साहित्यिक डिफाल्टरों के लिए
सफाईस एनारकी हूँ
एक सच्चा कवि हूँ।।
मुझसे मिलना है या मेरा पता चाहिए
तो जिला है महराजगंज
पुरन्दरपुर है थाना
थाने से सीधा आगे आइये
आके खाइये और चाय की तरह पी जाइये
कविता रूपी जहर डाकखाना
सीधा - सीधा कवि हूँ
या भईया हूँ पागल लोक का
कहते हैं मेरा नाम है कवि व्याकुल
निवासी हूँ कविरूपी यमलोक का।
रचना - दयानन्द त्रिपाठी
व्याकुल
लक्ष्मीपुर, महराजगंज
उत्तर प्रदेश।
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