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नई रचना "मैं, स्वयं से संवाद करता हूँ.....क्लिक कर पढ़े।

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मैं , 
स्वयं से संवाद करता हूँ 
कभी - कभी किसी 
विशेष मुद्दे पर 
गम्भीर वाद - विवाद करता हूँ 
हो गयी जो गलतियां अतीत में 
उनका पश्चाताप करता हूँ 
         मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ । 

मेरा साथी अपना 
     बातें मैं
इससे दिनरात करता हूँ 
अपनी आत्मा का बनूँ दर्पण मैं
पारदर्शी हो मेरा अस्तित्व
ऐसा अडिग प्रयास करता हूँ 
        मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ । 

कदाचित विचलित होऊँ 
समय के विलोम प्रभाव से 
इस हेतु बनाने को सम्बल 
अपने पौरूष का 
स्वयं से वादाकार करता हूँ 
        मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ ।

जीवन, के ख़ौफ़ ने सड़कों को 
     वीरान कर दिया
समय चक्र ने ज़िंदगी को 
     हैरान कर दिया
सामाजिक विसंगतियों के 
आतंक से "व्याकुल"
स्वयं को दो-चार करता हूँ
     मैं,
स्वयं से संवाद करता हूँ।

  दयानन्द त्रिपाठी
      व्याकुल 
लक्ष्मीपुर - महराजगंज, उत्तर प्रदेश

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