महानकवि सुमित्रानन्दन पंत की आज 120वीं जयन्ती पर एक छोटी सी कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ..दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महानकवि सुमित्रानन्दन पंत की आज 120वीं जयन्ती पर एक छोटी सी कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ..दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
शुरू कर रहा हूँ अभिनन्दन से,
छायावादी हिन्दी कवि महान हुए।
गंगा माँ की गोदी में जन्मे,
सरस्वती माँ का वरदान हुए।
सन उन्नीस सौ बीस मई मास को,
अवतरण हुए अल्मोड़ा के कौसनी गाँव में।
हिन्दी संस्कृत अंग्रेजी औ बंगला ज्ञान लिए,
प्रसिद्ध हुए सुमित्रानंदन पंत अलंकार में।
हिमालय गिरी सा गौरव है तेरा,
अम्बर से लेकर क्षितिज तक फैला प्रकाश।
कल - कल कर आवभगत करतीं,
नदियाँ सागर मोती की लड़ियों से पावस।
ज्ञानपीठ पद्यविभूषण साहित्य अकादमी के,
सम्मानों की लगी झड़ी ऐसे ग्रंथ महान दिए।
भारत तो तेरे श्रद्धा के भारों से धन्य हुआ,
जग में तेरे काव्य ग्रन्थों का प्रसार किए।
हे! प्रकृति के सुकुमार कवि महान
प्रकृति को भांप यूँ सूरज सा प्रकाश हुआ।
तेरे ग्रंथों को व्याकुल जग दे रहा सम्मान,
दिसम्बर 28,1977 को तेरा अवसान हुआ।
मौलिक रचना दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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