महराजगंज : अग्रसर हिन्दी साहित्य मंच जयपुर राजस्थान ने विश्व संचार दिवस दिनांक 17/05/2020 के आयोजित एक दिवसीय कार्यक्रम के अवसर पर रचना प्रस्तुत की जिस पर निर्णायक मण्डल ने सम्मान पत्र देकर शिक्षक कवि दयानन्द त्रिपाठी को किया सम्मानित
महराजगंज : अग्रसर हिन्दी साहित्य मंच जयपुर राजस्थान ने विश्व संचार दिवस दिनांक 17/05/2020 के आयोजित एक दिवसीय कार्यक्रम के अवसर पर रचना प्रस्तुत की जिस पर निर्णायक मण्डल ने सम्मान पत्र देकर शिक्षक कवि दयानन्द त्रिपाठी को किया सम्मानित
अग्रसर_हिन्दी_साहित्य_मंच_जयपुर_राजस्थान ने विश्व_संचार_दिवस के काफी भिन्न नीरस विषय पर भी रचनाएँ लिखी थीं और अपनी रचना संस्था के आयोजक के सामने प्रस्तुत हुईं आज अभी-अभी उस रचना के लिए सम्मान_पत्र देकर सम्मानित किया जिसे पाकर मैं भी हर्षित हुआ। सम्मानित करने के लिए अग्रसर हिन्दी साहित्य मंच को हार्दिक शुभकामनाएं ।
विश्व दूर संचार दिवस
दिनांक 17/05/2020
क्या ये रीति नहीं है...
द्रूत गति से संदेशों का आना जाना
संप्रेषण से संदेशों को यूं पहुंचाना
क्या ये रीति नहीं है?
पल में सात समंदर लाल मेरे तूं कैसा है
सजनी साजन से जानें पिया तूँ कैसा है
अब क्या ये रीति नहीं है?
दूतों से लेकर तीरों तक संदेशों को पहंचाते थे
कबूतरों से संदेशों का प्रचलन जोरों पर थे
क्या ये रीति नहीं थी?
डाकखानों से चिठ्ठीयों का आना जाना होता है
जीवन में संचारों का रूप निराला होता है
क्या ये रीति नहीं है?
अब अनन्त व्योम में संदेशों का पत्र पड़ा है
जैसे कोई पत्र लिये ही वास्तव में खड़ा है
क्या ये रीति नहीं है?
संदेशों का घनघोर नृत्य हो रहा है
दिल बाग बाग सा सजनी का हो रहा है
क्या ये रीति नहीं है?
इस महामारी में ये संचार न होता
पता नहीं चीनियों का वार क्या होता
खबरें दूर देश तक जाती हैं
पल में संदेश सुनाती है
होकर दूर भी साजन सजनी के पास हो आते हैं
माँ बेटे को देख मृत्यु से दो कदम दूर हो जाती है
अब क्या ये रीति नहीं है?
अब इन अविष्कारों से मिल गयी जीवन धार
गजब के इंटरनेट के व्यवहारों से
मिल गये दिल के तार इन अविष्कारों से
क्या ये रीति नहीं है?
रचना दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल उत्तर प्रदेश।
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