कलयुग_की_यह_सच्चाई_है...रचना प्रस्तुत है आशा है आप सबका प्यार मिलेगा
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बीत रहे दिन पर दिन
सड़कों को पसीना आई है
ट्राली - बैग पर बच्चा सोए
कलयुग की यह सच्चाई है।
खुला आकाश सर पर मकां
सड़कों की आँखे भर आई है
हो रह है वज्रपात यह कैसा
नव जीवन की बेला आई है।
सूनसान पसरे सन्नाटे में
सड़कों पर रेला आई है
घोर कष्ट है हृदय तल में
मानव का बौनारुप दिखाई है।
कराह रही सुख के कष्टों से माँ
बच्चा जनी सड़कों की गहराई है
आपदाएं खुशी के सोहर गाएं
सुविधाओं की झड़ी लगाई है।
सोच रहा है तेरा मानव
कैसी तेरी ये रूसवाई है
आरोपों के तीर धड़ाधड़
घिनौने खेलों की परछांईं है।
सड़कों ने गाँवों को छोड़ा
ले तेरा लाल, बाप, सिंदूर लाई है
व्याकुल देख सड़कों की छाती लाल
फटेचिटे कपड़ों में नीरभर आई है।
रचना_दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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