शीर्षक - बीत जाय यह दु:खमय रजनी।
जीवन में संघर्षों की गाथा
मिलती है नित नई परिभाषा
देख तिमिर विश्व पर छायी
अब दिल बैठ रहा मन ठगनी
बीत जाय यह दु:खमय रजनी।
मानव पर घोर संकट आयी
कोरोना नई बिमारी है हठनी
हर दिन हर पल सांस है अटकी
मूरख समझे ना दूरी नहीं है सटनी
बीत जाय यह दु:खमय रजनी।
मन उद्वेलित है मयखानों से
नासमझ इन जीवित परवानों से
कह रहे लाले पड़े हैं खाने जीने की
नहीं पास है रूपया चवन्नी
बीत जाय यह दु:खमय रजनी।
राम कृष्ण की है पावन धरती
धर्म युद्ध से विजय है मिलती
हे! मधुसुदन कर कृपा दूर कर रूदन
व्याकुल मानव की रक्षा तुझे है करनी
बीत जाय यह दु:खमय रजनी।
रचना-दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
उत्तर प्रदेश।
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