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क्वरेनटाइन पर देहाती महिला का अपने परिवार के प्रति दर्द को बयां करती रचना "आइल हमार परदेशी सजनवां, ठहर गईल इसकूल में !" प्रस्तुत करने का प्रयास है आशा है आप सबका आशिवार्द मिलेगा

क्वरेनटाइन पर देहाती महिला का अपने परिवार के प्रति दर्द को बयां करती रचना "आइल हमार परदेशी सजनवां, ठहर गईल इसकूल में !" प्रस्तुत करने का प्रयास है आशा है आप सबका आशिवार्द मिलेगा

आइल हमार परदेशी सजनवां
ठहर गईल इसकूल में !

वहीं  गेटवा  पे  बैइठे पुलिसवा 
घुसे    न    देला    इसकूल  में!
सांझ   भिनहीं  ताकत   रही लें,
निकले ना सजनवां इसकूल से!

मनवां हमार खीजत बा टीस उठेला प्रेम में,
सुनत रहलीं दुबरा गईल सजनवां परदेश में।

सुनेलीं जब आवता सजनवां परदेश से,
चम्पा  -  चमेली  के  बनवली  गजरवा,
मंहके ला मनवां धड़केला हिया तेज से।

फरल बा अमुवां लदल बा डलिया सेट में,
निक  न  लागे   हम्में   चटनियाँ  पेट  में!
21 दिन  बसउली  सरकारवा  सफरेट में,
परदेश से आजा सजनवां रोगवा फइलत बा विदेश में।

पास में रहता सजनवां  व्याकुल  बा  मनवां, 
चिड़िया और चिड़ा बैइठे बबूरवा के पेड़ में।

मौलिक रचना-दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
   लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उत्तर प्रदेश।

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