गुरु जी लोगों ! नौकरी और जलवा दोनों विरोधाभाषी शब्द हैं आप क्या कहते हैं ? क्लिक कर पढ़ेंं यह रचना
सब कुछ खोकर,
थोड़ा पाना..
जीते जीते, मरते
जाना..
यही हक़ीक़त यही
फ़साना..
यह जीवन का
ताना-बाना..
लेकिन कभी निराश
न होना..
मोती जैसे सीप
में रखना..
वही दिखाना जैसे
दिखना..
पानी से पानी पर
लिखना..
सर्वाधिकार सुरक्षित:@"शजर"
Very nice
जवाब देंहटाएंBahut achha
हटाएंकमाल कर दिया आपने ! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ! साधुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुत्ति साधुवाद श्री त्रिपाठी जी ।
जवाब देंहटाएंसाहित्य के प्रति आपकी सक्रियता को नमन
बहुत सुन्दर सराहनीय कार्य
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय ,🙏🙏
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