सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आइये पढ़े "वर्तमान में दरकते रिश्ते" - दयानन्द त्रिपाठी की रचना क्लिक कर पूरी पढ़े आपका प्यार कविता को मिलेगा।

आइये पढ़े "वर्तमान में दरकते रिश्ते" - दयानन्द त्रिपाठी की रचना क्लिक कर पूरी पढ़े आपका प्यार कविता को मिलेगा।

शीर्षक - वर्तमान में दरकते रिश्ते
====================
भौतिकवादी   युग  परिवेशों  में
रिश्ते  खण्ड-खण्ड  होते जा रहे,
सुख-दुख बांटने की अनुभूति में
एकल    रिश्ते    होते    जा   रहे
वर्तमान      में     दरकते    रिश्ते,
न्यूक्लियर  से  होते  जा  रहे।

मार्डन  एहसासों  के  जग में
रिश्तों के अभाव होते जा रहे
जिनकी   खातिर   सारी  उम्र
बुजुर्ग  बोझों  से दबते जा रहे
वर्तमान    में    दरकते   रिश्ते,
संवेदन शून्य होते जा रहे।

सपनों  को पाला पोशा  इतना
परिवारों में भाव मिटते जा रहे
कारण   व   निवारण   क्या  है
वर्तमान में रिश्ते दरकते जा रहे।

खूब   संजोया   सपना   अपना
दर्द है ऐसा सब बिखरते जा रहे
खुदगर्जी   और   नफरत   ऐसी
वर्तमान में दरकते रिश्ते जा रहे।

छोटी छोटी बातों पर हुआ अहम 
सम्बंधों के भावों में नहीं रहा दम
कारण   व   निवारण   क्या    दूँ
पानी पर पानी से लिखते जा रहे
कदम कदम पर संघर्षों की गाथा
वर्तमान  में  दरकते रिश्ते जा रहे।

अब रिश्तों की कोई  बात न पूछे
फटी    पुरानी    होती   जा   रही 
व्याकुल हो दर्द साफ कर पढ़ लो
चिड़िया   और   चिड़ा  को  देखो
बैठे  पेड़  बबूर  पर  सोचे  जा रहे
कारण    व    निवारण    क्या   है
वर्तमान  में  दरकते  रिश्ते जा रहे।
       मौलिक रचना:-
   दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
    महराजगंज,  उत्तर प्रदेश।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879