अकिंचन भक्त की सरस्वती वन्दना, हे! हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी, हे! आशिर्वचनों की वरदायिनी....रचना प्रस्तुत है क्लिक कर देखें
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सरस्वती वन्दना
हे! गणपति गणनायक तुझे कोटि - कोटि प्रणाम।
हे! गौरी सुत सुमरिन कर तेरा शुरू करूँ हर काम।।
हे! हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी ,
हे! आशिर्वचनों की वरदायिनी।
मेरा मन प्रकाशित कर दे माँ,
तूँ व्याकुल को ऐसा वर दे माँ।
पाकर विद्या ज्योति माँ तेरी,
कुबुद्धि अज्ञानता स्वाब कर मेरी।
मैं अबोध तेरी शरणों में आया,
तेरा पुजारी हूँ माँ बदलो मेरी काया।
काम, क्रोध, मोह, लोभ सब तेरी माया,
अवगुण मिटा कर दे ज्ञान की छाया।
तूँ स्वर की देवी तुझसे गीत-संगीत माँ,
मेरे हर शब्द को परिपूर्ण कर दे माँ।
नहीं चाहिए धन धान्य यश सम्मान पाऊँ,
पाकर चरण रज माँ मैं तर तर जाऊँ।
बस यही कामना तेराभक्त कहलाऊँ,
करता रहे अभ्यास निरन्तर तेरी सेवा पाऊँ।
हे! माँ शारदे इतनी कृपा कर वरदायिनी ,
विद्या ज्योति जगाकर ज्ञान दे ज्ञान स्वामिनी।
रचना - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
लक्ष्मीपुर महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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