"ये जीवन लहर है, कुटिल हर डगर है" रामाशीष तिवारी शजर की पूरी रचना क्लिक कर पढ़ेंं।
ये जीवन लहर है
कुटिल हर डगर है
मग़र साथ हरदम,
मेरा हमसफर है।
न इसकी खबर है
कि जाना किधर है
न है ख़ौफ़ इसका,
क़ि मुश्किल सफर है।
कहीँ पर निशाना
कहीँ पर नज़र है
न घर है तुम्हारा,
न मेरा ही दर है।
उसी का करम है
उसी की उमर है,
क़लम है ये जिसकी
उसी की नज़र है।
है मंज़िल को पाना
तो थकना मना है
जो रुकता नही है
वो निर्भर,निडर है।
जो थकता नहीँ है
जो रुकता नहीँ है
जो थमता नही है
वही तो "शजर" है।
वही तो "शजर" है।
मौलिक रचना:-
रामाशीष तिवारी शजर
सर्वाधिकार सुरक्षित@शजर
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