विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता "एक एक वृक्ष सभी लगा दें, तो सुन्दर होगा राहों में" प्रस्तुत है क्लिक कर पूरी कविता पढ़ेंं।
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आया है मानसून सुहाना
खड़ी जून के भावों में
एक एक वृक्ष सभी लगा दें
तो सुन्दर होगा राहों में।
आज प्रकृति जो कूपित है
मानव के कुटिल चालों से
पर्यावरण को दूषित कर रहा
निजी स्वार्थ के विकरालों से।
जल, थल, नभ को करें सुरक्षित
भौतिकवादी जंजालों से
दिव्यता से भरी धरा है
अनुपम बगियों के घुघुरालों से।
युद्धों का आगाज सदा
करते हरबा हथियारों से
धरा नहीं न मानव होगा
तो क्या करोगे चौबारों से।
जीवन साँस तभी तक है
जब प्रकृति दे रहा ममत्व हमें
पर्यावरण का होगा दोहन
तो संकट का घेरेगा घनत्व हमें।
जब-जब प्रकृति का हुआ दोहन
मानव अस्तित्व घिरा संकट में
यदि अब प्रकृति को नहीं समझे
तो फिर कोई कोरोना होगा धरा में।
मौलिक रचना:-
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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