दोहे (धोखा)
धोखा से धोखा मिले,धोखा घातक होय।
धोखा कभी न कीजिए,धोखा से सुख खोय।।
साधु-संत सँग जो करे,धोखा और अनीति।
ऐसे जालिम से कभी,करे न कोई प्रीति ।।
दमन-दंभ,धमकी-कपट, छल-प्रपंच हैं पाप।
धोखा इनका मीत है,करें कभी मत आप।।
धोखा देना मीत को,है जघन्य अपराध।
दो दिन के इस खेल में,मात्र प्रीति से साध।।
सीय-हरण रावण किया,बना कपट आधार।
नष्ट स्वयं हो कर किया,सकल बंधु-परिवार।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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