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मधु शंखधर 'स्वतंत्र

स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया
               बारिश

बारिश के अंदाज से ,  धरती हुई निहाल।
धरती की अति प्यास को, बुझा रही तत्काल।
बुझा रही तत्काल , जिया की प्यास हमेशा।
अनुपम अद्भुत दृश्य , प्यार का दे संदेशा।
कह स्वतंत्र यह बात , प्रीत की पहली ख्वाहिश।
भीगूँ प्रिय के साथ , हमेशा हो यह बारिश।।

बारिश में तन भीगता ,  मन का झंकृत तार।
पिया मिलन से हो सुखद, भाव ह्रदय उद्गार।
भाव ह्रदय उद्गार , प्रकट यह खुद ही होता।
नाचे मन का मोर , चैन भी मन का खोता।
कह स्वतंत्र यह बात , लगे तब बूँदें आतिश।
प्रियतम आए पास , प्रिया तन भीगे बारिश।।

बारिश की टिप टिप सदा , सप्त सुरों का वास।
इंद्रधनुष के रंग से , बादल करता रास।
बादल करता रास , चाँद भी तब छिप जाता।
प्रिया साथ हो रास , चाँद यह मौका पाता।
कह स्वतंत्र यह बात , चाँद यह करे गुजारिश।
बरसो मेघा आज ,  मुझे अति प्रिय है बारिश।।
मधु शंखधर 'स्वतंत्र
प्रयागराज

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