प्रणय से परिणय तक
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इत्तेफाक वश ही तो हम-तुम,
जिस दिन पहली बार मिले थे।
सचमुच हम दोनों के दिल में,
उस दिन आशा-दीप जले थे।। 1 ।।
उस दिन से फिर हम दोनों का,
मिलना बारम्बार हो गया।
फिर तो दोनों ही पक्षों से,
प्रणय-भाव स्वीकार हो गया।। 2।।
उर में प्रेम-पुष्प खिलते ही,
प्रेम-पराग लगा जब उड़ने।
प्रेम-सुवास हुआ जब प्रसरित,
अनुदिन प्रीति लगी तब बढ़ने।। 3 ।।
प्रणय-बेलि बढ़ते-बढ़ते ही,
सत्वर जा पहुँची अपनों तक।
हम दोनों की प्रेम-कहानी
फैल गई थी तब स्वजनों तक।।4।।
फिर स्वजनों ने आगे बढ़कर,
अपना लौकिक धर्म निभाया।
हम दोनों के मौन प्रणय को,
पावन परिणय तक पहुँचाया।। 5 ।।
परिणय-बन्धन में बँधने पर,
शमित हो गई सकल पिपासा।
आशा-किरणें जब फैलीं तो,
दूर हो गई सकल निराशा ।। 6।।
आज हमारे नवजीवन का,
सुरभित उपवन हरा-भरा है।
दूर हुआ सारा सूनापन ,
घर-आँगन भी भरा-भरा है।। 7 ।।
सचमुच इत्तेफाक ही तो था,
वह हम दोनों के बचपन में।
प्रणय-भाव परिणय में परिणत,
सुख-सागर उमड़ा जीवन में।। 8 ।।
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- डॉक्टर त्रिलोकी सिंह
हिन्दूपुर,करछना,प्रयागराज (यूपी)
व्हाट्सएप : 9838298970
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