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डॉक्टर त्रिलोकी सिंह

प्रणय से परिणय तक 
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इत्तेफाक वश ही तो हम-तुम,
जिस दिन पहली बार मिले थे।
सचमुच हम दोनों के दिल में,
उस दिन आशा-दीप जले थे।। 1 ।।

        उस दिन से फिर हम दोनों का,
        मिलना बारम्बार हो गया।
        फिर तो दोनों ही पक्षों से,
        प्रणय-भाव स्वीकार हो गया।। 2।।

उर में प्रेम-पुष्प खिलते ही,
प्रेम-पराग लगा जब उड़ने।
प्रेम-सुवास हुआ जब प्रसरित,
अनुदिन प्रीति लगी तब बढ़ने।। 3 ।।

          प्रणय-बेलि बढ़ते-बढ़ते ही,
          सत्वर जा पहुँची अपनों तक। 
          हम दोनों की प्रेम-कहानी
          फैल गई थी तब स्वजनों तक।।4।।

फिर स्वजनों ने आगे बढ़कर,
अपना लौकिक धर्म निभाया।
हम दोनों के मौन प्रणय को,
पावन परिणय तक पहुँचाया।। 5 ।।

          परिणय-बन्धन में बँधने पर,
          शमित हो गई सकल पिपासा। 
          आशा-किरणें जब फैलीं तो,
          दूर हो गई सकल निराशा ।। 6।।

आज हमारे नवजीवन का,
सुरभित उपवन हरा-भरा है।
दूर हुआ सारा सूनापन ,
घर-आँगन भी भरा-भरा है।। 7 ।।

         सचमुच इत्तेफाक ही तो था,
         वह हम दोनों के बचपन में।
         प्रणय-भाव परिणय में परिणत,
         सुख-सागर उमड़ा जीवन में।। 8 ।।
                    *******
         - डॉक्टर त्रिलोकी सिंह
    हिन्दूपुर,करछना,प्रयागराज (यूपी)
      व्हाट्सएप : 9838298970

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