कुसुमित कुण्डलिनी ----
------ ज्यादा -----
ज्यादा की लालच नहीं , थोड़े का है काम ।
चलो सभी को बाँटते , लिखा सभी का नाम ।।
लिखा सभी का नाम , बदल मत नेक इरादा ।
रहे न कोई दुःख , मदद कर उनकी ज्यादा ।।
ज्यादा की चाहत नहीं , मन मति रहना धीर ।
दाता जो भी दे दिया , वो प्रसाद शुचि खीर ।।
वो प्रसाद शुचि खीर , रखें यह जीवन सादा ।
पथिक राह आंनद , नहीं है इच्छा ज्यादा ।।
ज्यादा से बचकर रहो , करो नहीं अति लोभ ।
औरों को ज्यादा मिले , मत करना मन क्षोभ ।।
मत करना मन क्षोभ , तोड़ मत अपना वादा ।
रहो परम संतुष्ट , छोड़ दे हिस्सा ज्यादा ।।
ज्यादा बातें मत करो , आये जब परिणाम ।
वर्जित करते शास्त्र भी , होना मत बदनाम ।।
होना मत बदनाम , अभी तक है आमादा ।
बस मीठा ही बोल , ध्यान रख मत हो ज्यादा ।।
-------- रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह ( छ. ग. )
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