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गौरव शुक्ल

'' प्रकृति निस्तब्ध है यह हो गया क्या?
हमारी गाँठ से कुछ खो गया क्या?
दिशाओं में दसों हलचल मची क्यों?
नमी बाकी न नयनों में बची क्यों?
कहाँ रोयें,किसे पीड़ा दिखायें?
कहाँ से सांत्वना हित शब्द लायें?
विधाता ले गया क्या छीन करके ?
गया यह कौन हमको दीन करके?
+ + +
हमारे देश का श्रंगार था जो ,
हमारी ज्योति का आधार था जो।
विलक्षण शक्तियों का जो धनी था,
हमारे प्राण हित संजीवनी था।
नसों में रक्त के जैसा प्रवाहित ,
हमारी चेतनाओं में समाहित;
गया है कीर्ति के अकलंक रथ पर,
'मिसाइल मैन'वह स्वर्गीय पथ पर।
+ + +
न कारण भी अधिक कुछ शोक का है,
हुआ वह भूप नूतन लोक का है।
दिखाने राह आया था हमें वह,
सिखाया,जो सिखा पाया हमें वह।
हमें शुचि पंथ के दर्शन कराकर,
हमारे चित्त से कटुता भगाकर-
धरा को प्रेम का संदेश देकर,
गया है नेह का उपदेश देकर।
+ + +
बिठाओ, शीश पर उसको बिठाओ,
सजाओ ,भाल पर अपने सजाओ।
करो साकार उसके स्वप्न आकर,
सरलता, शीलता मन में बसाकर।
रहे जीवित युगों तक साख उसकी,
सहेजो प्रेरणा, ले राख उसकी।
हुई है नष्ट मृण्मय देह केवल,
मगर आत्मा हमारे संग प्रतिपल।
विराजित श्रेष्ठता के शीर्ष पर हैं,
अमर है वह 'अबुल पाकिर..'अमर है।'' 
+ + +
-गौरव शुक्ल
मन्योरा
लखीमपुर खीरी
मोबाइल-7398925402

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