ख़्वाब झूठे ही दिखाता है मुझे।
ये इश्क़ हर पल सताता है मुझे।।
दिल बोलना चाहे पर बोल पाता नही।
बेजुबाँ ये कुछ बात बताता है मुझे।।
हो गई है बात समझ से बाहर मेरे।
रोज-रोज वो क्यूँ आजमाता है मुझे।।
वादा था साथ चलेंगे हर एक मोड़ पर।
हर कदम पर फिर क्यूँ गिराता है मुझे।।
तमाम उम्र तो इसी बात का ही रंज रहा।
जो अपना था वो ही रुलाता है मुझे।।
लाख चाहा पर इससे बच पाया नहीं।
ये नश्तर सा दिल मे चुभाता है मुझे।।
अनूप दीक्षित"राही
उन्नाव उ0प्र0
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