सावन
बारिश की बुंदियों से
सज गई धरा प्यारी
नित-नित देखो कैसे
बदरा लुभाती है ।
बदरा हैं कारे कारे
पीयु पीयु मनवा रे
सावन की ऋतु देखो
मन मेरे भाती है ।
धानी सी चुनर ओढ़
तीखी कजरे की धार
गजरा लगा के केश
पिया को सताती है ।
मेहंदी से रचे हाथ
बिंदिया सजे है माथ
झुमका जो मुख चूमें
बड़ी इतराती हैं ।
स्वरचित
निशा अतुल्य
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