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दिलीप कुमार पाठक सरस

~गीत
मुस्कराते तुम रहो

गीत मैं रचता रहूँ, मीत गाते तुम रहो |
मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो||

तरुवरों ने दी तुम्हें, गंध गंधिल प्यार की|
 दुख-कथानक भूलकर, छाँव दी आधार की||
फूल-सी है जिंदगी, खिलखिलाते तुम रहो |
मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो ||

रूप कितने लो बदल, अंत होता है नहीं |
लौट आता दूर जा, घूम-फिरके फिर वहीं||
दीवटों के क्रोण में, जगमगाते तुम रहो |
मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो ||

आँसुओं को पोंछकर,हो हवाओं-सा मगन |
नाप लो सारी धरा ,नाप लो सारा गगन ||
चाँद बनकर रात में, झिलमिलाते तुम रहो |
मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो ||

गीत मैं रचता रहूँ, मीत गाते तुम रहो |
मुस्कराते तुम रहो, गुनगुनाते तुम रहो ||

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दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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