*सावन में तड़प*
विधा : कविता
बचपन खोकर आई जवानी
साथ में लाई रंग अनेक।
दिलको दिलसे मिलाने को
देखो आ गई अब ये जवानी।
अंग अंग अब मेरा फाड़कता
आता जब सावन का महीना।
नये नये जोड़ो को देखकर
मेरा भी दिल खिल उठता।।
अंदर की इंद्रियों पर अब
नहीं चल रहा मेरा बस।
नया नया यौवन जो अब
अंदर ही अंदर खिल रहा।
तभी तो ये दिलकी पीड़ा
अब और सही नहीं जा रही।
ऊपर से सहेली की नई बातें
दिलमें आग लगा रही है।।
कैसे अपने मन को समझाये
दिलकी पीड़ा किसे बताये।
रात रात भर हमें जगाये
रंगीन सपनो में ले जाये।
भरकर बाहों में अपनी वो
प्रेमरस दिलमें बरसाये।
और मोहब्बत को अपनी
हमरे दिलको दिखलाये।।
सच में ये सावन का महीना
आग लगाकर रखता मनमें।
और न ये बुझाने देता है
अंतरमन की आग को।
कभी कभी खुदके स्पर्श से
खिल जाती दिलकी बगिया।
फिर बैचेनी दिलकी बड़ जाती
मन भावन की खोज में।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन "बीना" मुंबई
28/07/2021
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