सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

डाॅ० निधि

पावन शिव अर्चना

कोटिक सूर्य सम प्रखर, शिव का लिंगी रूप। 
पाप, दोष का नाश कर, देत वर लिंग अनूप ।

नारायण  अरु  देव    ब्रह्मादि, 
सेवत पूजत नित शिवलिंगी। 
चन्दन ,कुमकुम ,पुष्प समर्पित, 
लेपत सुवर्ण सुगन्धित लिंगी।

अन्तस का तुम दीप जला लो,
नमः शिवाय का जाप लगा लो। 
शिव ही तो हैं घट -घट वासी, 
मन चाहा वर शिव से पा लो। 

दसों दिशाओं में शिव रहते, 
शिव ही पंच तत्व को गढ़ते।
कण-कण भीतर बसे शीव जी,
शक्ति के बिन शव हैं शीव जी। 

शिव को सदा हृदय में रखिये, 
स्वयं समर्पित शिव पर रखिये।
मन में शिव अरु तन हो शिवाला, 
शिव,शिव,शिव,शिव नित शिव भजिये। 

शिव को सादर शीश झुकाना, 
अन्दर -बाहर सब शिव जाना। 
शिव देखत सब तेरी करनी, 
क्यूँ कर चाल चलत विधि नाना। 

सब देवों के देव तुम , महादेव तव नाम। 
हाथ जोड़ विनती करूँ, कीजै जग कल्यान।


 डाॅ० निधि 
 *अकबरपुर, अम्बेडकरनगर।*

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879