पावन शिव अर्चना
कोटिक सूर्य सम प्रखर, शिव का लिंगी रूप।
पाप, दोष का नाश कर, देत वर लिंग अनूप ।
नारायण अरु देव ब्रह्मादि,
सेवत पूजत नित शिवलिंगी।
चन्दन ,कुमकुम ,पुष्प समर्पित,
लेपत सुवर्ण सुगन्धित लिंगी।
अन्तस का तुम दीप जला लो,
नमः शिवाय का जाप लगा लो।
शिव ही तो हैं घट -घट वासी,
मन चाहा वर शिव से पा लो।
दसों दिशाओं में शिव रहते,
शिव ही पंच तत्व को गढ़ते।
कण-कण भीतर बसे शीव जी,
शक्ति के बिन शव हैं शीव जी।
शिव को सदा हृदय में रखिये,
स्वयं समर्पित शिव पर रखिये।
मन में शिव अरु तन हो शिवाला,
शिव,शिव,शिव,शिव नित शिव भजिये।
शिव को सादर शीश झुकाना,
अन्दर -बाहर सब शिव जाना।
शिव देखत सब तेरी करनी,
क्यूँ कर चाल चलत विधि नाना।
सब देवों के देव तुम , महादेव तव नाम।
हाथ जोड़ विनती करूँ, कीजै जग कल्यान।
डाॅ० निधि
*अकबरपुर, अम्बेडकरनगर।*
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