ग़ज़ल-
हर तरफ़ है ख़ूब चर्चा आपके किरदार की
इसलिये भड़की है ख़्वाहिश आपके दीदार की
रोज़ी रोटी की तमन्ना में जवां दर दर फिरें
इस तरफ़ जाये नज़र कब देखिये सरकार की
कर दिया ऊपर से रोगन ख़स्तगी देखी नहीं
ज़िंदगी कैसे बचेगी सोचते दीवार की
बाग़बां को आयेगा कब बाग़बानी का शऊर
शाखे-गुल मुरझा रही है इन दिनों गुलज़ार की
हर किसी को अपनी अपनी ही पड़ी है आजकल
कौन कर पायेगा ऐसे में मदद लाचार की
गिर गया मेयार फ़न का इस कदर है दोस्तो
कौन क़ीमत पूछता है आज के फ़नकार की
किस कदर दिलदार है *साग़र* मेरा महबूब भी
ग़लतियाँ मेरी भुला देता है सौ सौ बार की
🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
27/7/2021
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