काव्य रंगोली परिवार।
"मेरे मन की यह अभिलाषा"
मेरे मन की यह प्रचण्ड अभिलाषा है।
मनसा मेरी परोपकार की हो पूरी, आशा है।
मैं किसी के लिए भला यथासंभव आजीवन करता जाऊँ।
अपने लिए तो सभी जीते, औरों खातिर जी कर दिखाऊँ।
समाज के लिए कुछ लोग हीं कर पुज्य होते हैं।
मानवता के नाते हम चलो महासंकल्प लेते हैं।
मैं भी कुछ कर पाऊँ, शक्ति प्रभु से प्रार्थना दोहराऊँ।
समाज के कल्याण हेतु बहुत कुछ कर बढ़ता जाऊँ।
लेते प्रण बड़ा काम हम सबको मिल कर करना है।
पशुवत् स्वार्थी नहीं उदार मानव हमको बनना है।
शंखनाद कर मन की अभिलाषा को पूर्ण करना है।
सेवा और त्याग धर्म हमारा- सभों को सुखी करना है।
पुष्पा निर्मल
बेतिया, बिहार।✍️
27/07/2021
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