गोरी में देखो आ गई यौवन की तरुणाई
प्रीति की पायल जब से बंध गई मेरे पांव।
रह-रह कर लगे उछलने मेरे गोरे-गोरे पांव।
उमर हो गयी है अब मेरी पूरे सोलह साल।
गालों पर लाली है छाई होठ हो गये लाल।
दिल वश में है ही नहीं ये जाने है पूरा गाँव।
भटक रहा मेरा मन तुम बैठे हो किस ठाँव।
नजर ढूँढ़ती प्रियतम को कहाँ छुपे हो प्रेमी।
आओ तुझे गले लगाऊं मिल जायें दो प्रेमी।
मन डोले मेरा तन उछले तड़प रहा है दिल।
ऐसे मुझे सताओ न तुम जल्दी आके मिल।
रह-रह के हो जाता मन तेरे लिए ये विह्वल।
याद में बहते मेरी आँखों से आँसू अविरल।
नहीं संभलती है गोरी से यौवन की तरुणाई।
रह-रह कर आती रहती है मुझको अंगड़ाई।
एक दूजे के हो जायें डाल गले फूलों के हार।
देखो कैसे बहती है ये पिया मिलन की बयार।
मेरे साजन तुम हो मेरे सपनों के राजकुमार।
तेरे मेरे प्रेम मिलन से लगे बरसने नित प्यार।
धक-धक करते ये दिल मेरा खाये हिचकोले।
बहुत हो गया अब हम तुम एक दूजे के होलें।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता, इंडिया
संपर्क : 9415350596
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