कविता
गाँव की गलियाँ
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शुद्ध,हवा,शुद्ध खान-पान,
मधुर वाणी शिष्ट व्यवहार।
मेरे गाँव की गलियाँ,
मनभावन तीज त्यौहार।।
खेत खलिहान धरोहर,
छाछ राबड़ी वो चटनी।
मेरे गाँव की गलियाँ,
छाप छोड़ती जो अपनी।।
पक्षी कलरव मनमोहक,
जैव विविधता मन भाती।
मेरे गाँव की गलियाँ,
सुखदायक प्यार लुटाती।।
घर आँगन सुंदर संस्कृति,
आन-बान-शान निराली।
मेरे गाँव की गलियाँ,
नयनाभिराम मतवाली।।
पावन संस्कृति की शोभा,
चहल-पहल थी सुखकारी।
मेरे गाँव की गलियाँ,
जय हो भारत माता की।।
©®
रामबाबू शर्मा राजस्थानी दौसा(राज.)
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