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मार्कण्डेय त्रिपाठी

गंगा  मैया

मानचित्र भारत का मुझको ,
शिव जी जैसा लगता है ।
बिखरे जटा जूट, हिमगिरि वन,
सिर गंगा जल फबता है 

यदि देखें भारत गाथा तो ,
मुझको ऐसा लगता है ।
एक समय था उत्तर भारत,
जल बिन सूना दिखता है ।।

हिमगिरि पर जलधारा थी पर,
उसको नीचे लाता कौन ।
विफल हुए थे यत्न अनगिनत ,
थके लोग, बिल्कुल थे मौन ।।

भगीरथ के पूर्वज तत्पर थे ,
किया उन्होंने बहुत प्रयास ।
किंतु सफलता नहीं मिली,
तब वे भी थककर हुए निराश ।।

राजा भगीरथ अभियंता थे ,
जो थे अटल व्रती,जन चाह ।
अपने साहस,तप के बल पर,
सजग निकाले जल की राह ।।

गंगोत्री से शुरू हुआ पथ ,
पहुंचा वह हरिद्वार, प्रयाग ।
अंत समय गंगा सागर तक,
पहुंचा,बुझी हृदय की आग ।।

पाकर गंगा का पावन जल ,
उपजा मन में स्नेह अपार ।
हुआ प्रफुल्लित जन मानस तब ,
उसको मिला मुक्ति का द्वार ।।

गंगा, मां बन गई तभी से ,
पूजा नित होती उसकी ।
प्रमुख नगर हैं गंगा तट पर ,
शोभा अगणित है जिनकी ।।

गंगा केवल नदी नहीं है ,
वह हम सबकी आशा है ।
उसकी अमृत धार बिना ,
जीवन में घोर निराशा है ।।

मार्कण्डेय त्रिपाठी

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