आज का छंद ---
----- शील ----
परिचय ----- एकादशाक्षरावृत्ति
गण संयोजन ----- सससलल
( 112-112-112-11 )
तुम तो करना गुरु वंदन ।
करते वह जीवन चंदन ।।
हरते दुख को बन पावन ।
करते रहते मन सावन ।।
शुभ पावन जो यह होकर ।
रहता तुझमे जब खोकर ।।
सुख पाकर ही खुश हो मन ।
दिखता रहता चहुँ वो तन ।।
अब डूब रहा सब मानव ।
धर पाप यहाँ बन दानव ।।
नित होकर देख विनाशक ।
बनते न कभी प्रभु वासक ।।
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व्यंजना आनंद मिथ्या
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