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संजय जैन बीना

नया संसार
विधा : कविता

बचपन की यादों को,
मैं भूला सकती नहीं।
मां के आँचल की यादे,
कभी भूल सकती नहीं।
दादा दादी और नाना नानी,
का लाड़ प्यार हमें याद है।
वो चाची की चुगली,
चाचा से करना।
भाभी की शिकायत
भैया से करना।
बदले में पैसे पाना,
आज भी याद है।
और उस पैसे से,
चाट खाना भी याद है।
भाई बहिनों का प्यार,
और लड़ना भी याद है।
भैया की शादी का वो दृश्य,
आज भी आंखों के समाने है।
जिसमे भाभी की विदाई पर,
उनका जोर से रोना याद है।
खुदकी शादी और विदाई का,
हर लम्हा याद आ रहा है।
मां बाप के द्वारा दी गई,
हिदायते और नसियाते। 
मैं आजतक नहीं भूली 
और न भूलूंगी।
क्योंकि अपनी दुनियाँ को 
मैं खोकर आई हूँ।
पर दिलमें नई उमंगे लेकर,
साथ पिया के आई हूँ।
जो अब है मेरी जिंदगी
के आधार स्तम्भ।
मानो मेरी जीवन का
यही है अब संसार।
छोड़कर माता पिता और, 
भाई बहिन को मैं।
नये माता पिता नंद देवर, 
भाई बहिन जैसे पाये है।
छोड़ छोटी सी दुनियाँ को,
मैं बड़ी दुनियाँ में आई हूँ।
अब जबावदारियों का बोझ,
स्वंय के कंधों पर उठाई हूँ।
क्योंकि दिया पिया ने मुझे 
इतना स्नेह प्यार जो। 
जिससे अब खुद की 
नई दुनियाँ बसाई हूँ।
और जो कलतक 
खुद एक बच्ची थी। 
आज माँ बन के 
वो सामने आई है।
और खुदका घर संसार 
बसाकर नया संसार पाई हूँ। 
और संसार को चलाने में 
खुदकी भूमिका निभा रही हूँ।। 

 जय जिनेन्द्र देव 
संजय जैन "बीना" मुम्बई

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