स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया
मिट्टी
मिट्टी की कीमत सदा, समझे वही कुम्हार।
रचता है जो हस्त से , निश्चित नव आकार।
निश्चित नव आकार , मूर्ति से देव बनाए।
पूजे यह संसार , साध्य से जीवन पाए।
कह स्वतंत्र यह बात, पके जो जाकर भट्टी।
पावन मिलता नीर , तभी हो शोभित मिट्टी।।
मिट्टी से जीवन मिले , मिट्टी से ही अंत।
चक्र यही चलता सतत् , नित जीवन पर्यन्त।
नित जीवन पर्यन्त , ईश की महिमा गाए।
काल बसा है जीव , सत्य यह ही बतलाए।
कह स्वतंत्र यह बात , आँख मत बाँधों पट्टी।
जीवन प्रभु की देन , मूल में बसती मिट्टी।।
मिट्टी की खुशबू अलग , मातृ रूप यह प्यार।
धरा सुशोभित हो रही , शोभा अपरम्पार।
शोभा अपरम्पार , सही औकात बताए।
धन का नहीं घमण्ड , सदा तन भी मिट जाए।
कह स्वतंत्र यह बात, मित्र से हो मत कट्टी।
सच्चा शोभित बंध , नीर अरु पावन मिट्टी।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज
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