एक गीतिका
समान्त अती
पदान्त आँखें
मात्रा भार 32
मात्रा पतन नहीं
कष्ट हुआ है तन को लेकिन
झर -झर-झर -झर झरतीं आँखें
नम्र स्वभाव बहुत ही इनका
पर दुख देखीं वहतीं आँखें
छिपे हृदय के भाव कहे बिन
कहतीं और समझ भी जातीं
चंचल स्वेत श्याम रतनारी
पढ़ी फ्लौस्फी लगतीं आँखें
जहाँ परस्पर मिल जातीं हैं
प्रेम रोग पैदा कर देतीं
करें विकल दिल कुटुम्ब तोड़ें
काम बहुत कुछ करतीं आँखें
सूना -सूना अंधकार मय
सब संसार लगे इनके बिन
एक बार मन मोहक देखें
पुनि -पुनि झुकि -झुकि पड़तीं आँखें
कहतीं सुनतीं लाज लजीली
इन में सदा शौर्य औ पानी
"सत्य" कोध यदि हुआ हृदय में
शोले जैसी जलतीं आँखें
सत्य प्रकाश शर्मा "सत्य"✍
निवासी -पुरदिल नगर ( सि० राऊ )
मो०-8273950927
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