सावन गीत: कजरी
हरे रामा रिमझिम बरसे बदरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी ,
हरे रामा मधुरे उठेला दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।।
देखो सखियाँ झूला झूलें,
देखत मोरा मनवा डोले,
हरे रामा गावें मिलके कजरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।
हरे रामा मधुरे उठेला दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।।
देखो पिया जी बहे पुरवाई,
झूमे जिया झूमे अमराई, कि
हरे रामा अंग-अंग उठेला लहरिया कि पिया नाहींअइलें ए हरी।
हरे रामा मधुरे उठेला दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।।
बिना साजन सावन ना भावे,
बूँद-बूँद तन अगन लगावे,कि
हरे रामा भींजत धानी चुनरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।
हरे रामा मधुरे उठेला दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।।
दादुर मोर पपीहा गावे,
धानी धरा जियरा हरसावे,कि
हरे रामा सूनी पड़ी रे सेजरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।
हरे रामा मधुरे उठेला दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।।
हरे रामा रिमझिम बरसे बदरिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी ,
हरे रामा मधुरे उठेला दरदिया कि पिया नाहीं अइलें ए हरी।।
✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना
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