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डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/14)
बनना नहीं निराशावादी,
कभी विफलता पाने से।
सुखमय होगा जीवन केवल,
ऐसा भाव भगाने से।।

हो जाओ संकल्पित मानव,
रजनी शुभकर करने को।
सुखद ज्योति ले दिनकर निकले,
तमस-विषाद निगलने को।
साहस-धैर्य धरोहर बनते-
केवल सोच जगाने से।।
     ऐसा भाव भगाने से।।

नकारात्मक सोच है दुश्मन,
मन में इसे न पलने दो।
पल-पल चैन छीनती रहती,
इसे न साथी बनने दो।
चाँद-सितारे दिखेंगे सुंदर-
आशा-दीप जलाने से।।
     ऐसा भाव भगाने से।।

उचित न लगता डर से डरना,
यह कायरता सूचक है।
पुरुष न,उसको क्लीब कहे जग,
यह विवेक उन्मूलक है।
अर्जुन होता सफल युद्ध में-
मन-अवसाद मिटाने से।।
    ऐसा भाव भगाने से।।

रोग-भोग-संयोग जगत है,
इसको हमें समझना है।
यही सत्यता जीवन की है।
यह संतों का कहना है।
सब कुछ लगता शुभ-शुभ मित्रों-
शुभ विचार उर लाने से।।
   बनना नहीं निराशावादी,
    कभी विफलता पाने से।
   सुखमय होगा जीवन केवल-
   ऐसा भाव भगाने से।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372


*पिया-मिलन*
चली अकेली पिया मिलन को,
एक सुंदरी आस लिए।
गर्म रेत पर चलती जाती-
प्रेम भरा विश्वास लिए।।

बढ़ती जाए,किधर चले वो,
शायद उसको ज्ञात नहीं?
साजन उसके रेत पार हैं,
जाने शायद बात नहीं।
पर उसकी चाहत का पंछी-
उड़े हृदय में प्यास लिए।।
       प्रेम भरा विश्वास लिए।।

चली जा रही बिना थके वह,
जलते रेतों के ऊपर।
सीने में जलती ज्वाला से,
शायद रेत नहीं बढ़कर।
उसे मिलेंगे उसके साजन-
बस यह अरमाँ खास लिए।।
       प्रेम भरा विश्वास लिए।।

बिना गिने कदमों की संख्या,
उसे देखिए वह जाती।
गर्म हवा के गर्म थपेड़ों,
को भी वह पग-पग खाती।
और जगत की हँसी-ठिठोली-
साथ हास-परिहास लिए।।
      प्रेम भरा विश्वास लिए।।

प्रेम जगत की बातों की भी,
नहीं कभी चिंता करता।
वह तो मस्त-निराला होता,
अपनी ही धुन में रमता।
पद-चिन्हों को पीछे छोड़े-
बढ़े सिर्फ अहसास लिए।।
    प्रेम भरा विश्वास लिए।।

अटल रहे विश्वास जब मन में,
चल कर मंज़िल आ जाती।
सुदृढ़ आस्था ही तो जग में,
अपना वांछित फल पाती।
दरिया पार वही जा पाता-
है जो मन न उदास लिए।।
        गर्म रेत पर चलती जाती-
         प्रेम भरा विश्वास लिए।।
                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

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