सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पंद्रहवाँ-2
क्रमशः...पंद्रहवाँ अध्याय (गीता-सार)
जीवात्मा तजि पूर्ब सरीरा।
मन-इंद्रिय सह प्रबिसै थीरा।।
   जाइ पुनः अति नूतन देहा।
   बायु-गंध इव बिनु संदेहा।।
सेवन करै पुनः रस-भोगा।
पाँचउ इंद्रि पाइ संजोगा।।
    त्वचा-घ्राण-लोचन अरु रसना।
    कर्ण समेत बिषय-रस चखना।।
ग्यान रूप लोचन जन ग्यानी।
समुझहिं तत्त्व, न जन अग्यानी।।
      सुचि हिय जोगी आत्म प्रयासा।
       जानि क तत्त्व रखहिं बिस्वासा।।
अन्तःकरण सुद्धि नहिं जाको।
अस मूरख नहिं जानै वाको।।
     सूर्य-चन्द्रमा-अगनी-तेजा।
     बिनु मम तेज रहहिं निस्तेजा।।
प्रबिसि अवनि मैं भूतन्ह धारक।
रस स्वरूप ससि अमरित बाहक।।
     करहुँ पुष्ट औषधि जे जग रहँ।
     सब तरु-पर्ण-पुष्प-फल जे अहँ।।
हमहिं प्राणि-बपु स्थित अगनी।
बैस्वानर बनि अनल भष्मिनी।।
     प्राण-अपान युक्त अन चारी।
     सतत पचावउँ बल संचारी।।
प्राणिन्ह उरहिं मैं अंतर्यामी।
स्मृति-ग्यान-अपोहन नामी।।
     केंद्र अध्ययन जानन जोगू।
     कर्त्ता मैं बेदान्तइ भोगू ।।
दोहा-सुनु अर्जुन तुम्ह ई जगत,छड़भंगुर-नसवान।
        इक आत्मा इक बपु बसहि,दुइ प्राणिन्ह अस जान।।
                           डॉ0हरि नाथ मिश्र
                             9919446372  क्रमशः......

पंद्रहवाँ-3
क्रमशः....पंद्रहवाँ अध्याय (गीतासार)
जीवात्मा अबिनासी जानउ।
नासवान तन प्राणिन्ह मानउ।।
     उत्तम पुरुष अन्य इहँ एका।
      प्रबिसि लोक तीनउ ऊ लोका।।
धारै-पोसै ऊ अबिनासी।
परमेस्वर सभ जीव उलासी।।
     मैं अतीत जड़-जिव-नसवानहिं।
     माया स्थित जिव आत्मानहिं।।
अस्तु,लोक अरु बेदन्ह हमहीं।
जग-प्रसिद्ध पुरुषोत्तम अहहीं।।
     ग्यानी पुरुष जानि पुरुषोत्तम।
     बासुदेव मों भजहिं बिना भ्रम।।
सोरठा-हे अर्जुन निष्पाप,गोपनीय निज रहसि मैं।
          कहेउ सकल जे आप,जानि होंय ग्यानी कृतगि।।
दोहा-जानि प्रभुहिं पुरुषोत्तमहिं,सुजन भजहिं भगवान।
        भजन करत हों पार जन,ई भव-सिंधु महान ।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                         9919446372
                    पंद्रहवाँ अध्याय समाप्त।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रक्तबीज कोरोना प्रतियोगिता में शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को मिला श्रेष्ठ साहित्य शिल्पी सम्मान

रक्तबीज कोरोना प्रतियोगिता में शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को मिला श्रेष्ठ साहित्य शिल्पी सम्मान महराजगंज टाइम्स ब्यूरो: महराजगंज जनपद में तैनात बेसिक शिक्षा परिषद के शिक्षक व साहित्यकार दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को श्रेष्ठ साहित्य शिल्पी सम्मान मिला है। यह सम्मान उनके काव्य रंगोली रक्तबीज कोरोना के चलते मिली है। शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी ने कोरोना पर अपनी रचना को ऑनलाइन काव्य प्रतियोगिता में भेजा था। निर्णायक मंडल ने शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल के काव्य रंगोली रक्तबीज कोरोना को टॉप 11 में जगह दिया। उनकी रचना को ऑनलाइन पत्रियोगिता में  सातवां स्थान मिला है। शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी को मिले इस सम्मान की बदौलत साहित्य की दुनिया में महराजगंज जनपद के साथ बेसिक शिक्षा परिषद भी गौरवान्वित हुआ है। बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षक बैजनाथ सिंह, अखिलेश पाठक, केशवमणि त्रिपाठी, सत्येन्द्र कुमार मिश्र, राघवेंद्र पाण्डेय, मनौवर अंसारी, धनप्रकाश त्रिपाठी, विजय प्रकाश दूबे, गिरिजेश पाण्डेय, चन्द्रभान प्रसाद, हरिश्चंद्र चौधरी, राकेश दूबे आदि ने साहित्यकार शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को बधाई दिय...

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

💐🙏🌞 सुप्रभातम्🌞🙏💐 दिनांकः ३०-१२-२०२१ दिवस: गुरुवार विधाः दोहा विषय: कल्याण शीताकुल कम्पित वदन,नमन ईश करबद्ध।  मातु पिता गुरु चरण में,भक्ति प्रीति आबद्ध।।  नया सबेरा शुभ किरण,नव विकास संकेत।  हर्षित मन चहुँ प्रगति से,नवजीवन अनिकेत॥  हरित भरित खुशियाँ मुदित,खिले शान्ति मुस्कान।  देशभक्ति स्नेहिल हृदय,राष्ट्र गान सम्मान।।  खिले चमन माँ भारती,महके सुरभि विकास।  धनी दीन के भेद बिन,मीत प्रीत विश्वास॥  सबका हो कल्याण जग,हो सबका सम्मान।  पौरुष हो परमार्थ में, मिले ईश वरदान॥  कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक (स्वरचित)  नई दिल्ली

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम