,,,,,,,,,,,,,सच गुनहगार है,,,,,,,,,,,,
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अम्न के नाम पर, हर तरफ रार है ।
लग रही जीत सी जो वही हार है ।।
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कब तलक दुश्मनों से करोगे गिला
दिल का कातिल यहाँ तेरा दिलदार है
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हर कोई चाहता, अर्श छूना मगर
लोग बौने, यहाँ ऊँची दीवार है
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अनसुनी है इधर दर्दो ग़म, आम के
खास लोगों की ,दिल्ली में दरबार है
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बिक रहे हैं ग़ज़ल, गीत, नगमें तभी
बज़म में आज बदनाम फ़नकार है
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उड़ रहे तेज झोंके से पत्थर इधर
इसलिए सहमा ,शीशे का किरदार है
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बंदिशें हैं कलम, कैमरों पर तभी
झूठ मुंसिफ ,यहाँ सच गुनहगार है
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शिवशंकर तिवारी ।
छत्तीसगढ़।
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