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छत्र छाजेड़ फक्कड़

सुप्रभात संग आज की पंक्तियाँ :-

रंगों  से  रंग  निकलते  हैं
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छत्र छाजेड़ “फक्कड़”

रंगों से रंग निकलते हैं
फिर जीने के अर्थ बदलते हैं

सातों रंग समाये इंद्र धनुष में
पर जीवन कब सतरंगी होता है
ज्यों ज्यों मिले बढ़े और लालसा
पर लालच में वो सब खोता है
काम,क्रोध,मान सभी तो
इस तृष्णा से पनपते हैं.....

क्या नहीं मिला प्रकृति से हमें
जीवन फिर भी उदास लगता है
बदलें नज़रिया जीने का तो फिर
जीवन यही बिंदास लगता है
सुख दुख दो छोर इक डोर के
अंतर कि किधर से पकड़ते हैं.....

खुल जाये यदि गाँठ तो मोती
माला के बिखर जाया करते हैं
घुल जाये ईर्ष्या मन में तो
परिवार बिखर जाया करते हैं
ख़ामोशी से उठता शक का धुँआ
फिर भ्रम में ही भ्रम पलते हैं.....

गरजे बादल आवेश के तो
आँधियाँ विनाश की चलती हैं
तमस घटा घनघोर दर्प की
झट जीने की राह बदलती है
अपनों से होते दूर अपने ही
फिर ग़ैरों से रिश्ते पनपते हैं......

शीतल कोमल निर्मल भावों से
शांति जीवन में विचरती है
मंज़िल जो मिल जाये परम की
जीवन शैली और निखरती है
धर्म फिर चाहे हो कोई सा
बातें सभी तो एक सी करते हैं...
रंगों से रंग निकलते हैं....

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