दर्द ए दिल
सबको दिखाई देती है मेरी, गुलज़ार महफ़िल।
रातों की तन्हाइयों का कोई मंज़र नहीं दिखता।
चेहरे की हंसी दिखती,आंखों की खुशी दिखती।
इनमें सूखे अबसार का, समन्दर नहीं दिखता।
सुनते हैं लोग ख़ूब मेरी, सुरों में पिरोए नग़मे।
नग़मो में छिपे दर्द का क्यों,बवंडर नहीं दिखता।
लिखती रहती हूं मैं क्यूं कर,इतनी दर्द भरी ग़ज़लें।
किसी को जब लफ़्ज़ों का कोई मतलब नहीं दिखता।
स्नेहलता पाण्डेय "स्नेह"
नईदिल्ली
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