।।*आत्म -- चिंतन*।।
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*सात्विक क्रोध*
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समय समय सब शोभता ,
प्रेम क्रोध सह त्याग ।
हर पल तुझमे देखना ,
बन जाता यह आग।।
खाक करें पल में यहाँ ,
शुभ फल भी सब जाय ।
पतन हुआ फिर धर्म का ,
दंड वही है पाय ।।
भीष्म पितामह ने यहाँ,
नहीं किया था पाप ।
एक पाप से था मिला ,
शैया वाणों शाप ।।
क्रोध समय पर हो अगर ,
होता नही अनिष्ट।
बचता वंश अधर्म से ,
सारे रहते शिष्ट ।।
पाया पुण्य जटायु था ,
एक कर्म से देख ।
क्रोध समय पर वह किया ,
बदली उसकी रेख ।
मिली गोद श्री राम की ,
जो उनके भगवान ।
श्रद्धा से सब पूजते ,
देते सारे मान ।
अतः क्रोध ऐसा करो ,
पुण्य सदा बन जाय ।
मर्यादा रक्षा बने ,
दूजे हित हो पाय ।।
वहीं क्रोध है पाप बने ,
दिए धर्म को चोट ।
अहित हुआ हो जब यहाँ ,
होती तेरी खोट।।
आभूषण है जीव का ,
शांति यहाँ है नाम ।
अविहित पाप खिलाफ,
करना तुम बस काम ।।
सात्विक क्रोधी जीव का ,
करता है उद्धार ।
वैसे नर का ही सदा ,
प्रभु लेते हैं भार ।।
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*व्यंजना आनंद "मिथ्या "*
विधा ---- कुण्डली
*बेटी*
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संजोए गुण मात की , पूरण करती धर्म ।
बेटी में यह गुण भरा , जान सुता के कर्म ।।
जान सुता के कर्म , जन्म से पूरा करती ।
सबका रखती ख्वाल , सभी की पीड़ा हरती ।।
कह मिथ्या आनंद , यही जग खुशियाँ बोए ।
भरकर प्रेम अथाह , ख्वाहिशे मन संजोए ।।
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व्यंजना आनंद मिथ्या ✍🏻
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