स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया
निशाना
लगा निशाना भेदते , अर्जुन मछली आँख।
जीत स्वयंवर द्रोपदी , बने वीर की साख।
बने वीर की साख , लक्ष्य को प्रतिपल साधे।
धरे एकता भाव , प्रीत में जपते राधे।
कह स्तंतत्र यह बात, तीर जब अर्जुन ताना।
भेद दिया वह लक्ष्य , चूकता नहीं निशाना।।
एक निशाना साध लो , साध्य सजग हो ध्यान।
साधन से ही प्राप्त हो , नित्य सफलता मान।
नित्य सफलता मान , गर्व अनुभूति कराए।
साथ रहे विश्वास , सहज नव मार्ग दिखाए।
कह स्वतंत्र यह बात , प्राण का नहीं ठिकाना।
निर्धारित हो लक्ष्य , ठीक तब लगे निशाना।।
प्रेम निशाना नैन से , घायल होता मीत।
बेचैनी का भाव ले , गाए प्रियवर गीत।
गाए प्रियवर गीत , मधुर संगीत सुनाए।
नृत्य करे तब हीर , राँझड़ा पास बुलाए।
कह स्वतंत्र यह बात , सभी मिल गाओ गाना।
शोभा अनुपम प्रेम , ह्रदय पर लगे निशाना।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज
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