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नूतन लाल साहू

मित्रता का धर्म

धन दौलत,छोटा बड़ा नही देखती
मन में अगर मित्रता की भाव हो
कमतर या गरीब ना समझना
श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता को याद करो।
याद रहें हमको बस
सदा समानता की भाव हो
जिसनें हमें ढांढस बंधाया
बुरें वक्त में आंसू पोंछे हो
ऐसे मित्र को कभी न भूलना
यही तो मित्रता का धर्म है।
धैर्य बंधाये उनके उर में
यदि दुखों का पहाड़ टूट पड़े
कुछ भी संदेह मत करना
मन में अगर मित्रता की भाव हो
हंसने के क्षण मिलकर हंस लें
रोने के क्षण मिलकर रो लें
यही तो मित्रता का धर्म है।
हो जाय न पथ में रात कहीं
मंजिल भी तो पास नही है
लुक छिप करके मित्रता निभाने वाले
दुखों से कौन बच सका है
वाणी का मधुमय स्वर हो
यही तो मित्रता का धर्म है।
महत्वहीनता का अहसास कराने वाला
प्रदर्शन कभी न करना प्यारें
मित्रता तो
धन दौलत, छोटा बड़ा नही देखती
मन में मित्रता की भाव हो
श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता सा भाव हो
यही तो मित्रता का धर्म है।

नूतन लाल साहू

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