बाँट गरल खुश हो रहा
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बाँट गरल खुश हो रहा अजब मनुज है यार
कपट भाव को भर हृदय तीरथ करे हजार।
अमिय ढूंढ़ता रात दिन निज अमरत्व हिताय
जो दूजों को बाँटता खुद को ही नहि भाय ।
कलुष भरा है आचरण कपट भरा निज सोच
बहुत बढ़े नाखून से दूजे तन मन नोच ।
रीत नीत उल्टा चुना हुए संकुचित भाव
हारा फिर रोता रहा सब कुछ द्युत के दाँव।
पाखंडी का आचरण और कपट का खेल
अनुपम घटना यह लगे पतन पतित का मेल।
पथिक चला जिस पाथ पर उसका ओर न छोर
तमस उग्र होकर सखा लील गया अब भोर ।
विजय कल्याणी तिवारी, बिलासपुर छ.ग.।
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