कर्म के दीप
जलाओ कर्म का दीपक,
पार बाधा सब हो जाये।
कर्मरत हो मगन है जो,
वही मंजिल सदा पाये।
जलाओ कर्म का दीपक ...
विचारो को सुदृढ़ कर लो,
रगों में हौसला भर लो।
जमीं हासिल हुई तुमको,
मुठ्ठी में आसमा कर लो।
जलाओ कर्म का दीपक....
कदम काँपे नहीं हरगिज,
नजर मंजिल पे गड़ जाये।
एकचित्त मन यदि स्थिर,
सफलता सन्निकट आये।
जलाओ कर्म का दीपक...
भुजाओं में भीम सा बल,
लक्ष्य अर्जुन सा हो जाये।
सत्य पर हो युधिष्ठिर सा,
वही रण में विजय पाये।
जलाओ कर्म का....
कर्म में हो निरत हरदम,
भाव निष्काम जग जाये।
कर्म दीपक गहन तम में,
प्रदर्शक पथ का बन जाये।
जलाओ कर्म का दीपक....
समर्पित हो कर्म पर तुम,
कर्म पूजा ये बन जाये।
कर्म करना तेरे वश में ,
क्यूँ प्रतिफल सोच घबराये।
जलाओ कर्म का दीपक...
मिलेगा तुम को वह एकदिन,
जो कुछ तुमने है सोचा।
अहर्निश हरि ने तेरे ही,
कर्म के भाव को देखा।
जलाओ कर्म का दीपक...
कर्म करता है जो निष्काम,
कर्मयोगी वही बनता।
कर्म के दीप हो उज्ज्वल,
जो सत्कर्मों से है बनता ।
जलाओ कर्म का दीपक...
विकारों से मुक्त हो कर,
कर्म के दीप जल जायें।
जले परहित कर्म के दीप,
मनुज महान हो जाये।
जलाओ कर्म का दीपक,
पार बाधा सब हो जाये।
कर्मरत हो मगन है जो,
वही मंजिल सदा पाये।
स्वरचित-
डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा, अकबरपुर अम्बेडकरनगर
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