*******काल के कपाल पर*******
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भारतीयता की गंध प्रसरित हो सुगंध,
ठानिए कि मात्र भारतीय कहलाएंगे.
काल के कपाल पर इतिहास लिखेंगे
करेंगे संहार दुश्मनों को दहलाएंगे
त्राहिमाम की पुकार मचे चहुँ ओर ही
रक्त की धार से उन्हें हम नहलाएंगे
हिमगिरि में लहराएंगे तिरंगा शान से
विश्व गुरु विश्व के विजेता कहलाएंगे
एक क्रांति गीत एक सुर उचार कर चलें
देश हित के वास्ते जिएंगे मर जाएंगे
परशुराम महाराणा प्रताप वंशजों में
हम हैं शौर्यवान उत्सर्ग कर जाएंगे
क्रांति का बिगुल बजा दुश्मनों पर दांव ले
करेंगे संहार खौफ़ उन पर भर जाएंगे
आह्वान काल का तान बक्ष ठोंक कर
दिगदिगंत जब चलें शत्रु डर जाएंगे
पुनीत प्रदीप ध्रुव भोपाली भोपाल मध्यप्रदेश,
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