स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया
खजाना
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मित्र खजाना नेह का , बाँटे निशदिन प्यार।
सदा कष्ट में साथ दे , खुशियों का आधार।
खुशियों का आधार , सहज वह गले लगाए।
अपनापन अति खास , बंध यह सबको भाए।
कह स्वतंत्र यह बात , मित्रता नहीं भुलाना।
ईश्वर का वरदान , लगे है मित्र खजाना।।
ज्ञान खजाना प्राप्त कर , मिथ्या मन का राज।
सुखद सदा ही तृप्ति हो , भाव बसा लो आज।
भाव बसा लो आज , पूर्ण यह मनुज बनाता।
अन्तर्मन कर वास , श्रेष्ठता मूल बसाता।
कह स्वतंत्र यह बात , लोभ को दूर भगाना।
सच्चा मौलिक रूप , ईश सम ज्ञान खजाना।।
बाँट खजाना तुम बनो , दीन दुखी के पीर।
सच्चे सुख अनुभूति से , बनता वही अमीर।
बनता वही अमीर , प्रेम धन जीवन जाने।
पर उपकारी भाव , सभी को अपना माने।
कह स्वतंत्र यह बात , धरा को हमें सजाना।
प्रेम भाव का फूल , सहेजो बाँट खजाना।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
,*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
*यात्रा*
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यात्रा जीवन की सुखद , पहुँचाए जो धाम।
कर्म निरंतर भाव से , सफल मिले परिणाम।
सफल मिले परिणाम , सत्य की राह दिखाए।
मिथ्या पथ पर शूल , लक्ष्य बाधित कर जाए।
कह स्वतंत्र यह बात , प्राप्त सत् की शुभ मात्रा।
लक्ष्य सतत् संधान , शोभनम् होती यात्रा।।
यात्रा यात्री जब करे , साधन होता मूल।
थक कर बैठेगा मनुज , जीत स्वयं ही भूल।।
जीत स्वयं ही भूल , हार को पास बुलाए।
धैर्य धरे जब पास , यही गुण सबको भाए।
कह स्वतंत्र यह बात , सीख यह मानो छात्रा।
साहस का यह रूप , श्रेष्ठ यह होगी यात्रा।।
यात्रा मौलिक ज्ञान की , साहित्यिक विस्तार।
लेखन में रुचि बढ़ रही , सत्य मूल आधार।
सत्यमूल आधार , वेद की पढ़ो ऋचाएँ।
संस्कृति का आधार , सभ्यता सार बताएँ।
कह स्वतंत्र यह बात , ज्ञान की योगी पात्रा।
सतत् साधना ध्येय , यही शुभ जीवन यात्रा।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*25.08.2021*
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